भारत में गाय भी राजनीति की भेंट चढ़ी

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जैसे भारत माता की जय बोलना सांप्रदायिक हो गया है वैसे ही गाय और  कई और नामों से जाने वाला ये जीव आज कल बड़ा राजनीति मोहरा सा हो गया है|

इसके बारे में बोलते ही लोग अजीब से जुनून में आ जाते हैं| हर तरफ से दुतकार झेलती ये बेचारी अब राजनीतिक अवसरवादिता और पक्षपति समाज की भेंट चढ़ रही है|

आज कल गाय को लोग हीन और तुच्छ नज़रों से देखते हैं; ये वही समाज है जो इसके दूध, मूत्र, गोबर पर पलता है पर तब भी इसको मारने से और इसकी खाल नोच कर कपड़े, बटुए और फर्नीचर बनाने से बाज़ नहीं आता|

देखा जाए तो आज कल इस देश में कोई भी जानवर कम से कम भारत में तो सुरक्षित नहीं है|

मुर्गी, बकरे और मछली मार काट के हम खाते हे हैं, सुअरों को हम ख़त्म करने पर तुले हैं| शेर से लेकर हाथी तक हमने मार दिए तो फिर गाय बेचारी कब तक बचती? भले ही वो कितनी भी उपयोगी क्यूँ ना हो, मनुष्य तो नहीं हैं ना?

भले ही लोग इसको माता कहते हों, पर इस माता के लिए आज तक कुछ ख़ास किसी ने नहीं किया| ज़बरदस्ती इसको गर्भ ठहराया जाता है ताकि ये दूध दे, दूध निचोड़ कर कूड़े में इसको भेज दिया जाता है ताकि ये वहाँ से अपना पेट भरे और जब ये बूढ़ी होती है तो कसाईघर जाती है| खाने के लिए कूड़े में केवल गाय को धकेला जाता है कभी भैंस या बकरियों  को नहीं|

जिसका दूध इतना पौष्टिक है, जिसके मूत्र से दवाइयाँ बनती है और जिसके गोबर के काडों से आज भी गाँवों में चूल्हा जलता है, उसके साथ ऐसा बर्ताव केवल और केवल भारत में ही हो सकता है| पर अगर हम इसके खिलाफ आवाज़ उठायें तो राजनीति तुरंत चालू हो जाती है|

ये तब है जब जीवों के प्रति भारतीय समाज हमेशा से उदार हे रहा है, उनसे प्रेम करना हमारी सभ्यता और संकृति का हिस्सा है|

आज जब शक्तिमान नाम के घोड़े के लिए लोगों का प्यार उमड़ते देखते हैं तो वाकई में मान खुश हो जाता है की हम अभी भी मानवता नहीं भूले हैं| पर ये मानवता जो एक घोड़े के लिए दिखती है वो गाय के लिए तब कहाँ लुप्त हो जाती है जब बीफ फेस्टिवल के नाम पर सैकड़ों की हत्या कर दी जाती है?

क्यूँ हमारा समाज आज आडंबर से भरपूर और पक्षपाती हो गया है? गाय, बकरी, शेर, हिरण, कछुआ, मछली या कोई भी अन्या जीव जो इस धरती पर हैं, क्या उनको प्रेम करना आवश्यक नहीं है? इस भाग दौड़ भारी ज़िंदगी में इंसान ने अपने आपको इस तरह से बाँध लिया है की उसको अब अपने स्वार्थ के अलावा कुछ और नहीं दिखता और ये सब तब है जब इसी समाज ने बिश्नोई समाज जैसे परम प्रतापी समुदायों को जन्म दिया है जो जीव को बचाने के लिए अपने प्राण तक बलिदान करने से पीछे कभी नहीं हटे|

माँ का दर्जा रखने वाली गाय आज अकेली है क्यूंकी अब वो समय नहीं रहा जब माँ का मान ये समाज सबसे उपर रखता था| आख़िर भारत माता भी तो सांप्रदायिक भाषणों की ही भेंट चढ़ गयी हैं तो गाय कैसे बच सकती है?

Pic credit: helpanimalsindia.org