सोशियल मीडीया में खबर कम और अफवाहों की भरमार ज़्यादा रहने लगी है आज कल|
अब इसी खबर को ले लो की रतन टाटा, महान भारतीय उद्योगपति, ने ये कहा है की वो जेएनयू के छात्रों को नौकरी नहीं देंगे| इसके बाद आए उफान से हैरान परेशन लोगों ने टाटा के इस वक्तव्य पर बेहद आश्चर्य प्रकट किया| आख़िर हो भी क्यूँ ना? रतन टाटा जैसी मानी हुई हस्ती ऐसे शब्द कहे और उस पर कहीं कोई खबर हो हे ना? ऐसा कैसे हो सकता है?
जब लोगों ने टाटा ग्रुप से ट्विटर पर इस संबंध में सवाल दागे तो वहाँ से साफ बोला गया की रतन टाटा ने ऐसा कभी कुछ कहा ही नहीं है!
इसीलिए सोशियल मीडीया पर हर खबर पर भरोसा ना करना एक अच्छी नीति है|
एक बात इन आह्वाह उड़ाने वालों से भी पूछनी चाहिए की क्यूँ हम झूठ के अंबार पर राष्ट्रवाद का किला खड़ा करने की कोशिश करें?
राष्ट्रभक्ति हर एक में होनी चाहिए, पर उसका उन्माद खड़ा करना बेहद निंदनीय है| हाँ हम वन्दे मातरम कहेंगे, हाँ हम जय हिंद कहेंगे, पर इसके साथ साथ हम सत्यनिष्ठ रह कर फ़ेसबुक और ट्विटर के बाहर सड़क पर भी इस भक्ति को दिखायें तो क्या ये बेहतर नहीं होगा?
ये सवाल वो हैं जिन पर हमें ठंडे मन से सोचना चाहिए|
रतन टाटा या किसी भी भारतीय नागरिक के बारे में ऐसी अफवाहें उड़ाना बेहद ग़लत है और इसकी निंदा होनी चाहिए| रतन टाटा या कोई भी और भारतीय जिससे कोई भी चिढ़ रखता है, आज वो सोशियल मीडिया में बदनाम किया जा सकता है| जिन्होने ये अफवाह उड़ाई हमारा उनसे सवाल है, की क्या हमारे संस्कार और आदर्श जो हमें इसी मिट्टी से मिले हैं वो इतने कमज़ोर हैं की आज हम झूठ को बढ़ावा देने में लगे हैं? क्या भारत सरकार राष्ट्र की रक्षा में सक्षम नहीं है? क्यूँ ये अफवाह उड़ाने वाले रतन टाटा जैसी शख्सियत को भी लपेट रहे है?
ज़रा सोचिए, देश को आगे अगर बढ़ाना है तो पहले उसकी नींव मज़बूत कीजिए सच की घुट्टी से|
चित्र: ट्विटर से साभार