जी हाँ, सही पढ़ा आपने कैप्टन पवन कुमार के बारे में|
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दक्षिणी कश्मीर के पांपोर इलाके में आतंकियों से मुठभेड़ में कैप्टन पवन कुमार बेनीवाल देश के लिए शहीद हो गए।
पर अब इस वीर शहीद कप्तान पवन कुमार को कुछ लोग उनकी जाती और उनकी डिग्री से आंक रहे हैं तो कुछ इस वीर का हवाला देकर नसीहत बाँट रहे हैं, लेकिन वो सब ये भूल जाते हैं की इस 23-वर्षीय सैनिक ने दरअसल अपने आपको इन बंधनों से कबका आज़ाद कर दिया था|
भारतीय सेना में जाकर कप्तान पवन कुमार भारत का बेटा ही बनकर रह गया था तो अब इसकी वीरगति पर लोग इनकी डिग्री और जाती कहाँ ले आए?
खुद इनकी आखरी फेसबुक पोस्ट में इन्होने लिखा था की ना तो इनका कोटा चाहिए ना ही इनको कोई आज़ादी चाहिए, इनको तो बस एक रज़ाई चाहिए|
तब भी देश नहीं समझा की ये सैनिक क्या कहना चाह रहा है?
ये है एक सैनिक की ज़िंदगी जो एक बेहद सादा जीवन जीता है, जिसमें जाती, प्रांत और राजनीति की कोई भूमिका नहीं होती, वो इन सबसे बहुत ऊपर उठ जाता है|
जब वो बार्डर पर दुश्मन और आतंकीओं से लोहा लेता है तो वो किसी जाती -विशेष के लिए नहीं, बल्कि देश के उन लोगों के लिए करता है जिनको वो जानता पहचानता भी नहीं होता|
एक सैनिक का जीवन किसी मुनि के जीवन समान हो जाता है, वो दुनिया भर का बोझ उठा कर भी दूसरों की सुरक्षा में अपनी खुशी ढूंढता है| अपने परिवार से महीनों दूर रह कर वो पीड़ा सहता है ताकि हम और आप जैसे लोग चैन से रहे और आज हमने ऐसे ही महान व्यक्तित्व वाले इंसान को राजनीति के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया?
देश से जुड़े महान व्यक्तियों को जाती या प्रांत में विभाजित कभी ना करें चाहे उसके पीछे आपकी मंशा कितनी भी अच्छी क्यूँ ना हो|
वीर जवान पवन कुमार को सच्ची श्रधांजलि देनी है तो सामने से आकर प्रेम और सदभाव बढ़ाइए, देश में शांति लाइए और अंदर के दुश्मनों को बेनकाब कीजिए|
स्वर्गीय पवन कुमार के बलिदान का मान कीजिए, राजनीति छोड़िए और एक होने का प्रयास कीजिए|
हम इस वीर को सादर नमन करते हैं|