जस्टिस सुरेन्द्र कुमार सिन्हा बांग्लादेश के चीफ़ जस्टिस हैं। बांग्लादेश के चीफ़ जस्टिस बनने वाले वह पहले हिन्दू हैं। वह 17 जनवरी, 2015 को बंगलादेश की सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बने थे।
17 सितम्बर, 2014 को बांग्लादेश की पार्लियामेंट (जातीय सन्सद) ने क़ानून में सुधार के लिये 16वें संशोधन को पास कर दिया। इससे बांग्लादेश की पार्लियामेंट को यह अधिकार मिल गया कि वह अदालतों के जजों को हटा सके।
5 मई, 2016 को हाइकोर्ट की एक स्पेशल बेन्च ने संविधान के 16वें संशोधन को ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया।
हाइकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। जस्टिस सुरेन्द्र कुमार सिन्हा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यों वाली बैंच ने 3 जुलाई, 2017 को सर्वसम्मति से सरकार की अपील को रद्द करते हुये हाइकोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराया।
सुप्रीमकोर्ट की सात सदस्यों वाली बैंच के इस फ़ैसले के लिये प्रधानमंत्री समेत कुछ मन्त्रियों ने जस्टिस सिन्हा की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की। 13 सितम्बर को पार्लियामेंट ने एक प्रस्ताव पारित करके सुप्रीमकोर्ट के निर्णय को रद्द करने के लिये क़ानूनी क़दम उठाने की मांग की।
बढ़ते विवाद के बीच जस्टिस सिन्हा 3 अक्टूबर से एक महीने की छुट्टी पर चले गये। 13 अक्टूबर को वह ऑस्ट्रेलिया के लिये रवाना हो गये। उनकी जगह जस्टिस मुहम्मद अब्दुल वहाब मियां को सुप्रीमकोर्ट का कार्यकारी चीफ़ जस्टिस नियुक्त किया गया है।
जस्टिस सिन्हा के ऑस्ट्रेलिया जाने के अगले ही दिन सुप्रीमकोर्ट की तरफ़ से एक बयान जारी करके उन पर 11 दोष लगाये गये। इनमें आर्थिंक लेनदेन में अनियमतायें, मनी-लॉन्ड्रिंग, और भृष्टाचार आदि के दोष शामिल हैं।
इन दोषों को देखते हुये सुप्रीमकोर्ट के दूसरे जजों ने जस्टिस सिन्हा के साथ किसी भी बैंच में बैठने से इनकार कर दिया। इससे बांग्लादेश की सुप्रीमकोर्ट में एक गतिरोध पैदा हो गया है।हालांकि जस्टिस सिन्हा ने छुट्टी से वापिस आकर फिर से चीफ़ जस्टिस का चार्ज सम्भालने की बात की है, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुये इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। 31 जनवरी, 2018 को उनकी सेवानिवृत्ति होनी है। और पढ़ने के लिए देखें: