एक मुस्लिम युवक ने मार्कण्डेय काटजू को खत लिख कर मुस्लिम समाज के बारे में कुछ बातें कहीं|
मुस्लिम युवक ने अपना नाम ना बताने को कहा जिसको काटजू ने माना| उसका ये पत्र हम बिना किसी कांट छांट के पढ़ा रहे हैं:
मुसलमानों के पिछड़ेपन को समझने के लिए सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पढ़ने की जरुरत नहीं है,,, केवल उनकी फेसबुक पोस्ट पढ़ लीजिये, अंदाज़ा लग जाएगा। कुछ अपवादों को छोड़कर ज्यादातर पोस्ट का मजमून कुछ यूँ होता है- हिन्दुओं के देवी देवता का अपमान ,,,मोदी जी और RSS को गाली ,,या अल्लाह हमको ये अता फरमा, वो अता फरमा; नमाज के फायदे, नमाज के तरीके, या मेरे नबी तुम्हारी ये शान तुम्हारी वो शान, ये मस्जिद वो मस्जिद, ये मक्का वो मदीना, नमाज पढ़ने वाला छोटा सा बच्चा, बुरका पहनने के फायदे, इस्लामी कानून की महिमा, पेड़ पर/ बादलों में/जमीन पर लिखा हुआ अल्लाह, ईराक सीरिया में मरे हुए लोगों के लिए जन्नत की दुआएं, कमलेश तिवारी जैसे लोगों को लानत भेजती हजारों हज़ार पोस्ट्स, 6 दिसंबर, बाबरी मस्जिद या फिर कुरआन की आयतें।ये उस मुसलमान की हालत है जो अच्छा खासा पढ़ा लिखा है, स्मार्टफोन और लैपटॉप इस्तेमाल करता है और फेसबुक-ट्विटर पर सक्रिय है। इससे अनपढ़ या कम पढ़े लिखे कामकाजी या मजदूर टाइप मुसलमानों की स्थिति का अंदाज़ा अपने आप हो जाता है।
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अगर आप ये सोच रहे हैं कि मैं मुस्लिम समाज की बुराई कर रहा हूँ तो आप गलत हैं। मैं सिर्फ मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन को उजागर कर रहा हूँ, जैसा कि सच्चर कमिटी ने भी किया है। अंतर सिर्फ इतना है कि सच्चर कमेटी ने ये बताने की कोशिश की थी कि भारत में मुसलमानो की सामाजिक स्थिति क्या है और मैं ये बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि ये स्थिति क्यों है।
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मुसलमान तब आगे बढ़ेगा जब वो हर बात पर अल्लाह अल्लाह करने के बजाए शिक्षा पर बात करेगा, रोजगार पर बात करेगा, मूलभूत सुविधाओं पर बात करेगा, संविधान पर बहस करेगा, अपने कानूनी अधिकारों के लिए आवाज उठाएगा, अपने समाज की बुराइयों पर बात करेगा ….