जस्टिस सुरेन्द्र कुमार सिन्हा बंगलादेश के चीफ़ जस्टिस हैं। ज़्यादा अच्छे तरीके से समझना हो, तो हम कह सकते हैं कि वह बंगलादेश के पहले हिन्दू चीफ़ जस्टिस हैं।
बंगलादेश की सरकार से विवाद बढ़ने के बाद वह लम्बी छुट्टी लेकर ऑस्ट्रेलिया चले गये हैं। वह कब लौटेंगे, इस बारे में कुछ भी अन्दाज़ा नहीं। जनवरी, 2018 में उन्होंने रिटायर होना है। हो सकता है कि तब तक वह बंगलादेश न ही लौटें। बंगलादेश एक क़ानूनी मुद्दे पर उलझा हुआ है। बंगलादेश की सरकार और जस्टिस सिन्हा के विवाद का ज़िक्र मैं किसी और लेख में करूँगा।
जस्टिस सिन्हा 17 जनवरी, 2015 को बंगलादेश की सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बने थे। वह मुस्लिम-बहुल बंगलादेश के पहले हिन्दू थे, जो इस पदवी तक पहुँचे। इससे पहले जस्टिस राणा भगवानदास पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के कार्यकारी चीफ़ जस्टिस रह चुके हैं।
बंगलादेश कभी पाकिस्तान का ही हिस्सा हुआ करता था, जो पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बंगलादेश बना था। पाकिस्तान भी कभी ब्रिटिश इण्डिया का हिस्सा था। 15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान एक अलग मुल्क़ के रूप में वजूद में आया था।
जब राणा भगवानदास पाकिस्तान के कार्यकारी चीफ़ जस्टिस बने, तो भारत में वह अख़बारों की सुर्खियां बने। एक मुस्लिम बहुसंख्यक देश में एक हिन्दू का कार्यकारी चीफ़ जस्टिस बनना ही सुर्खियां बटोरने का लिये काफ़ी था।
जस्टिस सुरेन्द्र कुमार सिन्हा भी इसी लिये भारत में ख़बरों में आये, क्योंकि वह हिन्दू थे और एक मुस्लिम बहुसंख्यक देश में चीफ़ जस्टिस बने थे। जस्टिस राणा भगवानदास और जस्टिस सिन्हा में यह एक समानता थी।
लेकिन मुस्लिम बहुसंख्यक देश में एक्टिंग चीफ़ जस्टिस या चीफ़ जस्टिस बनना ही जस्टिस राणा भगवानदास और जस्टिस सिन्हा में इकलौती समानता हो, ऐसा भी नहीं था। इनमें एक समानता और थी; वह यह कि दोनों का मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क़ों में इतने बड़े पदों पर पहुंचना कुछ कट्टरपंथियों को बहुत बुरा लगा था।
जब जस्टिस सुरेन्द्र कुमार सिन्हा बंगलादेश के चीफ़ जस्टिस बने, तो एक मज़हबी ग्रुप ‘ओलेमा लीग’ ने माँग रखी कि जस्टिस सिन्हा को चीफ़ जस्टिस के पद से हटाया जाये। ओलेमा लीग का कहना था कि मुस्लिम बहुसंख्यक देश में एक हिन्दू के चीफ़ जस्टिस होने से मुसलमानों की मज़हबी भावनाएँ आहत होती हैं।
एक हिन्दू का एक्टिंग चीफ़ जस्टिस बनना पाकिस्तान में भी कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा। उनको हटाये जाने की माँग उठाई गई। यहाँ तक कि राणा भगवानदास को जज बनाये जाने के ख़िलाफ़ सिन्ध हाइकोर्ट में एक अपील भी डाल दी गयी थी।