पारो और रानी पद्मावती में फ़र्क़ है: योगेश्वर दत्त

Devdas, Paro,Padmavati story, Chittor, Yogeshwar Dutt, पारो, रानी पद्मावती, योगेश्वर दत्त, जोधा-अकबर , राजपूत करनी सेना,संजय लीला भंसाली, राजपूत करनी सेना, वीडियो, पद्मावती, अलाउद्दीन खिलजी, दीपका पादुकोण ,रणवीर सिंह , Sanjay Leela Bhansali, Padmavati

महारानी पद्मावती के मान के लिए योगेश्वर दत्त ने भी साफ साफ बात बोली है| रानी पद्मावती को देवदास की पारो समझने की भूल ना करने की नसीहत देकर योगेश्वर दत्त ने साफ कर दिया की वो इससे बेहद आहत हैं|

योगेश्वर दत्त ने इस मुद्दे पर ट्वीट किया और कहा:

चित्तौड़ की रानी की साहस,बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है।चित्तौड़ के राजा रतनसिंह का स्वयंवर किया था। उपन्यास अलग बात है और इतिहास अलग बात।पारो और रानी पद्मावती में फ़र्क़ है।त्याग, बलिदान,साहस का प्रतीक रानी #पद्मावती  के साथ सावधानी रखे। आक्रमणकारी ख़िलजी से गरिमा की रक्षा के लिए 16000 वीरांगनाओं के साथ रानी #पद्मावती ने जौहर किया,भस्म हुयी किंतु ख़िलजी को नहीं मिली| हार निश्चित होने के बाद भी 12 साल से ऊपर का हर पुरुष केसरिया साफ़ा बाँध कर “साका व्रत” किया।इस गौरव गाथा से छेड़-छाड स्वीकार नहीं की जा सकती|

रानी शिरोमणि पद्मावती की कहानी:

योगेश्वर दत्त ने शाका व्रत की बात की है| जौहर तो सभी को पता होगा क्यूंकी इसको सती जैसा मानने की भूल अक्सर लोग करते ही हैं| पर शाका भी जौहर से कम नहीं है|

रानी पद्मावती अति रूपवान और चरित्रवान् थीं, दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने उनके रूप के बारे में सुना और उनको पाने की चाहत में विक्रमी संवत १३५९ के दिन इसने चित्तोड़ पर चढाई की|

चित्तोड़ के महाराणा रतन सिंह महारानी पद्मावती के पति थे और बेहद शूरवीर थे| उन्होने भी खिलजी की सेना को मज़ा चखने के लिए कमर कसी| उनके वीरों ने छह माह तक अलाउद्दीन को नाकों चने छब्वाए तब शातिर खिलजी ने सोचा की सामने से वार करना बेकार है और सैनिक भी हताश हो गये थे तो उसने वही किया जो कोई भी चालाक राजा करता; उसने महाराणा रतन सिंह के पास संधि प्रस्ताव भेजा और मित्रता माँगी उसने ये भी कहा की वो महारानी पद्मावती के प्रशंसक हैं और उनके दर्शन के आकांशी हैं| उसने ये भी कहा की वो कुछ सैनिकों के साथ ही दुर्ग में आएगा| राजपूत राजा के पास कोई चारा नहीं था, क्यूंकी हिंदू धर्म में मैत्री संधि का मान करने का रिवाज था| खिलजी दुर्ग में घुस आया और राजा ने उसका उचित सत्कार किया पर खिलजी किसी ना किसी बहाने राणा को अपने ठिकाने के करीब ले आया और मौका देख बंदी बना लिया |

महाराणा रतन सिंह को छुड़ाने के लिए बड़े प्रयत्न हुए पर वो असफल रहे और अलाउद्दीन ने  कहलवाया कि पहले रानी पद्मावती  को मेरे सामने लाओ तभी वो महाराणा रतन सिंह को मुक्त करेगा अन्यथा नहीं | रानी अपने पति के लिए परेशान थीं अतः राजा रानी के सेवक काका गोरा ने एक युक्ति सोची| उसने खिलजी को ये कहलाया कि रानी पद्मावती की यह शर्त यह की वो उसके सामने तभी आएँगी जब पहले उनको महाराणा से मिलने दिया जाए| साथ ही ये भी बोला गया की रानी के साथ उनकी सेविका का एक पूरा दल भी होगा| इस बात को खिलजी ने स्वीकार कर लिया | योजनानुसार रानी पद्मावती की पालकी में उनकी जगह उनका सेवक गोरा बैठा और दासियों की जगह पालकियों में सशत्र राजपूत सैनिक बैठे | यहाँ तक की उन पालकियों को उठाने वाले लोगों की जगह भी वस्त्रों में शस्त्र छुपाये राज्य के वफ़ादार सैनिक ही थे |

खिलजी के आदेश के अनुरूप पालकियाँ राणा रतन सिंह के शिविर तक बेरोकटोक गई और राजपूतों ने भेष से निकल कर खिलजी के सैनिकों को दौड़ा दौड़ा कर भगाया और मारा| इसी हलचल में राणा रतन सिंह घोड़े पर निकल लिए| पर खिलजी को ये बर्दाश्त नहीं हुआ, छह माह तक उसने लगातार दुर्ग को घेरे रखा जिससे खानी पीने की किल्लत होने लगी| राजपूतों ने मंत्रणा की और जौहर और शाका का निर्णय लिया| गोमुख के उत्तर वाले मैदान में विशाल चिता का निर्माण किया गया और महारानी पद्मावती के नेतृत्व में 16000 राजपूत महिलाओं ने गोमुख में स्नान कर चिता में प्रवेश किया | राजपूत पुरुष अपनी माताओं, बहुओं, पत्नी, और बेटियों को जलते देखते रहे, इसके बाद उनको अंतिम प्रणाम करके, केसरिया वस्त्र पहनकर 30, 000 सैनिक निकले और भूखे सिंहों के समान खिलजी के सैनिकों से लड़ने के लिए निकले | राजपूत आखरी खून की बूँद तक लड़े| इनमें कुछ तो मात्र बालक ही थे|

महाराणा के वफ़ादार गोरा ने भयंकर युद्ध किया| उसके भतीजे बादल, जिसकी आयु मात्र 12 वर्ष थी, ने भी खूब लड़ा| इस बालक की बहादुरी इस तरह से बखान की जाती है:

बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ |

सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ ||

ये लड़ाई 6 माह और सात दिन तक चली और आख़िरकार १८ अप्रैल १३०३ को  चित्तोड़ के दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन वहाँ एक भी पुरूष,स्त्री, या बालक जीवित नही मिला| बस यही है शाका| शाका में पराधीनता के बजाय मृत्यु को गले लगाते हुए शत्रु कसे अंतिम सांस तक लड़ा जाता है|

रानी पद्मावती एक महारानी नहीं रहीं, उनका दर्जा एक माता जैसा हो गया जिसको राजस्थान का बच्चा और बड़ा आँखों में श्रद्धा के आँसू लाकर करता है|