रानी पद्मावती विवाद पर भाजपा नेत्री उमा भारती ने खिलजी के समर्थकों पर ज़ोरदार धावा बोला है| एक खुले खत में उन्होने अपने मन की बात देश की जनता के सामने रखी है| ये पत्र पूर्णत: उन्ही की कृति है|
तथ्य को बदला नहीं जा सकता, उसे अच्छा या बुरा कहा जा सकता है। सोचने की आजादी किसी भी तथ्य की निंदा या स्तुति का अधिकार हमें देती है।
जब आप किसी ऐतिहासिक तथ्य पर फिल्म बनाते हैं तो उसके फैक्ट को वायलेट नहीं कर सकते।
रानी पद्मावती की गाथा एक ऐतिहासिक तथ्य है। अलाउद्दीन खिलजी एक व्यवचारी हमलावर था। उसकी बुरी नजर रानी पद्मावती पर थी तथा इसके लिए उसने चित्तौड़ को नष्ट कर दिया था। रानी पद्मावती के पति राणा रतन सिंह अपने साथियों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए थे। स्वयं रानी पद्मावती ने हजारों उन स्त्रियों के साथ, जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गए थे, जीवित ही स्वयं को आग के हवाले कर जौहर कर लिया था।
हमने इतिहास में यही पढ़ा है तथा आज भी खिलजी से नफरत तथा पद्मावती के लिए सम्मान तथा उनके दुखद अंत के लिए बहुत वेदना होती है।
आज भी मनचाहा रेसपॉस नहीं मिलने पर कुछ लड़के, लड़कियों के चेहरे पर तेजाब डाल देते हैं, वो सब किसी भी धर्म या जाति के हों, मुझे अलाउद्दीन खिलजी के ही वंसज लगते हैं।
मैंने इस फिल्म डायरेक्टर की पहले भी फिल्में देखी हैं, मैं सोचने की आजादी का सम्मान करती हूं तथा मानती हूं कि सोचे हुए को अभिव्यक्त करने का भी मानव समाज को एक अधिकार है। किंतु, अभिव्यक्ति में कहीं तो एक सीमा होती ही है। जैसे कि- आप बहन को पत्नी और पत्नी को बहन अभिव्यक्त नहीं कर सकते। इसकी संभावना जानवरों में तो हो सकती है लेकिन स्वतंत्र चेतना के विश्व के किसी भी देश के किसी भी समाज के लोग इस मर्यादा के उल्लंघन की निंदा ही करेंगे।
इसलिए मेरा कहना यही है, मैंने तो फिल्म देखी नहीं है, किंतु लोगों के मन में आशंकाओं का जन्म क्यों हो रहा है? इन आशंकाओं का लुत्फ मत उठाइए, न इससे कोइ वोट बैंक बनाइए। कोई रास्ता यदि हो सकता है, जरूरी नहीं है कि जो मैंने सुझाया है वही हो, वो रास्ता निकालकर बात समाप्त कर दीजिए।
किंतु यह ध्यान रहे, मैं तो आज की भारतीय महिला हूं, जिस स्थिति में होंगी, भूत, वर्तमान और भविष्य के भारतीय महिलाओँ के प्रति यथाशक्ति अपना कर्तव्य जरूर पूरा करूंगी।