ये पोस्ट ज़ी न्यूज़ के पत्रकार रोहित सरदाना की है जो उन्ही के फेसबूक अकाउंट से आभार के साथ ली गयी है|
रोहित सरदाना ने संजय लीला भंसाली के ऊपर हुए हमले के सन्दर्भ में ये लिखा है और बॉलीवुड के मापदंडों पर तीखा प्रहार किया है| ज़ी न्यूज़ के पत्रकार रोहित सरदाना की इस पोस्ट में कोई बदलाव नहीं किए गये हैं.
जानिए रोहित सरदाना ने क्या कहा:
कहते हैं सिनेमा समाज का आईना होता है, ठीक वैसे ही जैसे साहित्य समाज का आइना होता है. फिर ये आइना अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की छूट कैसे दे देता है ?
“…यहां प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे,
कूद पड़ी थी यहां हज़ारों पद्मिनियां अंगारों पे.
बोल रही है कण कण से कुर्बानी राजस्थान की…”
जब इतिहास के हर दस्तावेज़ में पद्मिनी को जगह ही इस लिए मिली कि वो अलाउद्दीन खिलजी के आने के पहले हज़ारों औरतों के साथ आग में कूद गई, तो कौन से ‘अल्टरनेट व्यू’ से आप खिलजी और पद्मिनी को प्रेम कहानी के खांचे में ढाल रहे हैं? और अगर ‘अल्टरनेट व्यू’ के नाम पे कुछ भी जायज़ है तो फिर विरोध के ‘अल्टरनेट’ तरीके पर इतना हंगामा काहे के लिए है?
करनी सेना ने संजय लीला भंसाली के साथ सही नहीं किया.
लेकिन करनी सेना जैसे संगठनों को ताकत कहां से आती है?
#SanjayLeelaBhansali की अभिव्यक्ति की आज़ादी का ढोल पीट रहे बॉलीवुड के एंग्री यंगमैन,ए आर रहमान पर आए फतवे के दिन सार्वजनिक अवकाश पे थे?
— Rohit Sardana (@sardanarohit) January 28, 2017
उसी बॉलीवुड से आती है, जो संजय लीला भंसाली को थप्पड़ पड़ने पे तो अभिव्यक्ति की आज़ादी चिल्लाने लगता है, लेकिन ए आर रहमान के खिलाफ़ फतवा आने के बाद मुंह ढंक कर सोया रहता है.
एक झुण्ड ने थप्पड़ मार दिए तो हिन्दू आतंकवादी हैं, दुनिया भर में लोग मर रहे पर उस आतंक का कोई मज़हब नहीं है! शाबाश! https://t.co/3xnpNo0x8R
— Rohit Sardana (@sardanarohit) January 28, 2017
करनी सेना को ताकत उस कोर्ट से आती है जो जल्ली कट्टू को जानवरों पर अत्याचार मान कर बैन कर देता है, लेकिन बकरीद के खिलाफ़ याचिका को सुनने से ही इंकार कर देता है.
करनी सेना को ताकत उस सिस्टम से मिलती है जो एम एफ़ हुसैन को हिंदू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीरें बनाने पर तो सुरक्षा मुहैया कराता है लेकिन चार्ली हेब्दो वाला कार्टून अपने पब्लीकेशन में छापने वाली औरत को दर दर धक्के खाने के लिए मजबूर कर देता है.
गुंडागर्दी जायज़ नहीं है. लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अपनी ‘इंटेलेक्चुअल गुंडागर्दी’ भी तो बंद कीजिए !
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