एम. वेंकैया नायडू : सीखने के लिए संस्कृत को आसान बनाया जाना चाहिए

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उप-राष्ट्रपति  एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि संस्कृत के प्रयोग को लोकप्रिया बनाया जाना चाहिए और इसके लिए शब्दों को सरल बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि कोई भाषा विलुप्त होती है तो वह संस्कृति और इतिहास भी भविष्य में विलुप्त हो जाएगा, जिनसे यह भाषा जुड़ी हुई है।

आज नागपुर में ऑल इंडिया ओरियंटल कॉन्फ्रेंस के 50वें सत्र को संबोधित करते हुए उप-राष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत को सरल बनाया जाना चाहिए ताकि आम आदमी इसे समझ सके। आवश्यकतानुसार नए शब्दों को भी जोड़ा जाना चाहिए।

वेंकैया नायडू ने कहा कि किसी भी भाषा को धर्म और समुदाय के नजर से नहीं देखना चाहिए। वेद, उपनिषद और संस्कृत पूरे देश के हैं। प्रत्येक व्यक्ति को भाषा सीखने की सुविधा होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि सभी प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में किया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी भारत की संस्कृति, परंपरा और इसके इतिहास को समझ सकें।

इस संदर्भ में नायडू ने कहा कि जर्मनी में संस्कृत पर विस्तृत शोध व अनुसंधान किए जा रहे हैं, जबकि भारत संस्कृत के विकास और प्रोत्साहन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा है।

इतिहास लेखन में साहित्य और भाषायी स्रोतों के महत्व के बारे में  नायडू ने कहा कि भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक पूरी संस्कृति – पूरी सभ्यता का प्रतिनिधित्व करती है। हमारी भाषाएं एक साझा सूत्र हैं, जो हमें अपने भूत और भविष्य से जोड़ती हैं।

उप-राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में 19,500 भाषाएं और बोलियां हैं। 196 भाषाएं विलुप्ति की कगार पर हैं।  नायडू ने कहा कि कोई देश प्रगति नहीं कर सकता यदि वह अपने इतिहास की अवहेलना करता है। भारत के वास्तविक इतिहास को शामिल करने के लिए शिक्षा व्यवस्था में बदलाव किया जाना चाहिए और तुकाराम, ज्ञानेश्वर, नारायण गुरु, अल्लूरी सीताराम राजू, वीरापांडियन कट्टाबोम्मन तथा अन्य महान विभूतियों की कहानियों को भी पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।

नायडू ने शिक्षा, प्रशासन और दैनिक जीवन में भारतीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने हाई-स्कूल तक की शिक्षा मातृभाषा में देने के लिए सभी केन्द्र और राज्य सरकारों से आग्रह किया।

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