पाकिस्तान बनाने की माँग की अहम बुनियाद टू-नेशन थ्योरी या दो-क़ौमी नज़रिया ही था। इस टू नेशन थ्योरी पर अपने ख़्यालात का इज़हार करने से पहले मैं ज़रुरी समझता हूँ कि नेशन के कान्सैप्ट पर कुछ विचार कर लूँ।
नेशन अंग्रेज़ी ज़बान का लफ़्ज़ हैं। यह बुनियादी तौर पर लेटिन ज़बान के natio (नेशो) से निकला है, जिसका मतलब है, पैदाइश, लोग, क़बीला वग़ैरह। नेशन लोगों का एक वह बड़ा समूह है, जिसमें कुछ साझा बातें हैं। इन साझा बातों में ज़बान, परम्परा, पहरावा, आदतें, रस्म-ओ-रिवाज, और वह इलाक़ा, जहाँ ये लोग रहते हैं, शामिल हैं।
लोगों का एक बड़ा ग्रुप, जो एक ही ज़बान बोलता हो, लोगों के उस ग्रुप के रसम-ओ-रिवाज एक-से हों, उनका पहरावा एक-सा हो, वह अपने आप को उस ग्रुप के तौर पर ही पहचानते हों, वह अपने ग्रुप के भले-बुरे को अपना ही भला-बुरा समझते हों, तो वह ग्रुप एक नेशन हैं। किसी नेशन का अपना आज़ाद मुल्क हो, यह भी कोई ज़रुरी नहीं है। किसी एक ही मुल्क मेँ कई नेशन्स इकठ्ठा भी रह सकती हैं।
अगर पाकिस्तान की बात करें, तो पख़्तून एक नेशन हैं। बलोच एक नेशन हैं। सिन्धी एक नेशन हैं। पंजाबी एक नेशन हैं।
नेशन कोई ऐसा समूह नहीं हैं, जो एक ही दिन में बन गया हो, या बहुत थोड़े-से वक़्त में ही बन गया हो। लोगों के किसी समूह को एक नेशन बनने मेँ लम्बा वक़्त लगता है। लोगों के एक समूह को नेशन बनने में लगा वक़्त ही इतिहास में लिखा जाता है।
लफ़्ज़ नेशन किसी आज़ाद मुल्क के लिये भी इस्तेमाल किया जाता है। किसी ख़ास इलाक़े को भी नेशन कह दिया जाता है। जब यूनाइटेड नेशन्स कहा जाता है, तो वहाँ उसका मतलब अलग-अलग मुल्कों से है, जिनकी आज़ाद हस्ती है।
भारत इस लिये एक नेशन है, क्योंकि इसकी आज़ाद हस्ती है। यह एक आज़ाद मुल्क है। इस मेँ अलग-अलग ज़बानें बोलने वाले लोग रहते हैं, जिनकी अलग-अलग संस्कृतियाँ/cultures हैं, अलग-अलग रस्म-ओ-रिवाज हैं।
कोई भी इन्सान अगर भारत में आकर भारत की नागरिकता हासिल कर लेता है, तो वह भारत नेशन का हिस्सा बन जाता है। नेशन का ऐसा संकल्प सिविक नेशनलिज़्म (Civic Nationalism) कहा जाता है।
नेशन के कान्सैप्ट को कभी-कभी जातीय राष्ट्रवाद (ethnic nationalism) के नज़रिये से भी define किया जाता है। एडोल्फ हिटलर ने ‘नेशन’ के बारे में कहा था, “What makes a people or, to be more correct, a race is not language, but blood”. उस के नज़रिये से तो नेशन असल में race है, नस्ल है।
हिटलर ने कहा था, “It is almost inconceivable how such a mistake could be made as to think that a Nigger or a Chinaman will become a German because he has learned the German language and is willing to speak German for the future and even to cast his vote for a German political party.”
“यह सोच से भी परे है कि ऐसी ग़लती कैसे की जा सकती है कि यह सोचा जाये कि एक निग्गर या एक चाइनीज़ जर्मन बन जाएगा, क्योंकि उसने जर्मन भाषा सीख ली है और भविष्य में जर्मन बोलने को तैयार है, और यहाँ तक कि वह जर्मन सियासी पार्टी को वोट देने को भी तैयार है।”
हिटलर के इस नज़रिये को ही जातीय राष्ट्रवाद (Ethnic Nationalism) कहा जाता है। अगर कोई इन्सान बाहर से आकर किसी मुल्क का नागरिक बनता है, तो भी वह उस मुल्क की नस्ली नेशन का हिस्सा नहीं माना जायेगा।
जातीय राष्ट्रवाद के नज़रिये से जर्मन एक नेशन है। और कोई भी ग़ैर-जर्मन आदमी जर्मनी में रहकर, जर्मन ज़बान बोलकर जर्मन नहीं बन सकता, क्योंकि जर्मन होना एक एथनिक मुद्दा है। जो जर्मन पैदा नहीं हुआ, वह जर्मन नहीं हो सकता, ऐसा नज़रिया ही जातीय राष्ट्रवाद है।
क्या मुस्लिम होना कोई नस्ली या जातीय (ethnic) मुद्दा है? अपनी नस्ल को तो कभी भी बदला नहीं जा सकता। जो जर्मन नस्ल का है, वह जर्मन ही रहेगा। जो अरब नस्ल का है, वह अरब ही रहेगा। नस्ल का सीधा ताल्लुक़ जन्म से है। क्या मुसलमान होने का सीधा ताल्लुक़ जन्म से है? जो मुसलमान नहीं पैदा हुआ, क्या वह मुसलमान नहीं हो सकता? जो मुसलमान पैदा हुआ, क्या वह कभी ग़ैर-मुसलमान नहीं हो सकता?
दूसरे मज़हबों के कई लोग मुसलमान बन जाते हैं और कई मुसलमान इस्लाम छोड़ कर कोई और मज़हब अपना लेते हैं या नास्तिक भी बन जाते हैं। इससे बिल्कुल साफ़ हो जाता है कि मुसलमान होना कम-अज़-कम जातीय राष्ट्र या नस्ली क़ौम होना तो बिल्कुल नहीं है।
क्या मुसलमान होना भाषाई राष्ट्र (Linguistic nation), या एक ही ज़बान बोलने वाली क़ौम होना है?
पूरे साउथ एशिया में रहने वाले मुसलमान अलग-अलग ज़बानें बोलने वाले लोग हैं। कोई पश्तो बोलता है, तो कोई फ़ारसी। कोई पञ्जाबी बोलता है, तो कोई सराइकी। कोई सिन्धी बोलता है, तो कोई बलोची। कोई हिन्दी बोलता है, तो कोई उर्दू। कोई गुजराती बोलता है, तो कोई मराठी। कोई तमिल भी बोलता है। कोई कन्नड भी बोलता है।
इससे बिल्कुल साफ़ हो जाता है कि साउथ एशिया मेँ रहने वाले मुसलमान एक भाषाई राष्ट्र (Linguistic nation) भी नहीं हैं।
आल इण्डिया मुस्लिम लीग ने जब मुस्लिम नेशन का मुद्दा उठाया, तो उन्होने दरअसल नेशन की एक अलग परिभाषा देने की कोशिश की थी। इस परिभाषा के अनुसार रिलीजन या मज़हब ही नेशन है।
इसी टू-नेशन थ्योरी की बुनियाद पर पाकिस्तान की स्थापना की मांग की गई थी। और, आख़िर, इसी टू-नेशन थ्योरी या दो-क़ौमी नज़रिया की बुनियाद पर ही पाकिस्तान बनाया गया था।
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