55 वर्षीय किरपाल सिंह की मौत की खबर से उनका परिवार सकते में है और भारत भी| पर उनके परिवार ने कुछ ऐसी बातें कहीं हैं जो सोचने पर मजबूर करती हैं की कहीं किरपाल सिंह की मौत एक बहुत बड़ी साज़िश तो नहीं है पाकिस्तान की?
पाकिस्तान का किरदार किसी से छुपा हुआ नहीं है, सब जानते हैं की कैसे सरबजीत सिंह को पीट-पीट कर पाकिस्तान की ही जेल में मार डाला गया| इसलिए जब किरपाल सिंह का परिवार ये कहता है की उनके घर के चिराग को पाकिस्तान ने सिर्फ़ इसिसलिए बुझे दिया क्यूंकी वो सरबजीत सिंह की मौत का सच जानते थे अपने आप में सुगबुगाहट जगाता है |
अब इसमें कितनी सच्चाई है, ये तो पोस्ट मॉर्टम की रिपोर्ट के बाद ही पता चलेगा| पर सोचने की बात ये है, की पाकिस्तान में बंद भारतीय कैदी किस तरह की अमानवीय स्थिति में रहते हैं| क्या भारत सरकार इन कैदियों को वापिस लाने के लिए कुछ और प्रयास कर सकती है? क्यूँ देश के मानवाधिकार संगठन इन मुद्दों पर पाकिस्तान के खिलाफ कुछ नहीं करते? क्या भारतीय कैदी मानव नहीं हैं? जब ये पाकिस्तानी आतंकवादियों, जैसे अजमल कसाब, के लिए दुनिया भर में आसमान सिर पर उठाए रह सकते हैं, तो इन मासूम कैदियों के लिए क्यूँ नहीं?
किरपाल सिंह की मौत एक संकेत है की हमें अपने देश के नागरिकों को बचाने के लिए और ज़बरदस्त प्रयास करने होंगे, आख़िर कब तक देश के लोग इस तरह मरेंगे? वो भी मात्र इस वजह से की वो ग़लती से भटक कर पाकिस्तान की सीमा में जा पहुँचें? बाड़ लगाने का काम किसी भी कीमत पर तेज़ गति से होना चाहिए और इनके परिवारों के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी भी सरकार को ही उठानी चाहिए|
ये अच्छी बात है की सरबजीत सिंह की बहन, दलबीर कौर इस दर्द भारी घड़ी में किरपाल सिंह के परिवार के साथ चट्टान की तरह खड़ी हैं और उनको संबल प्रदान कर रही हैं, पर अब बारी इस देश की सरकार और नागरिकों की है| क्या हम तैयार हैं?