अमरीका के राष्ट्रपति पद के लिए उभरते उम्मीदवार डोनल्ड ट्रॅंप ने अब एप्पल कंपनी को आड़े हाथों लिया है| कारण है की इस कंपनी ने सैन बर्नाडिनो में हुए नरसंहार की जाँच में एफबीआइ की जाँच में मदद करने से इनकार कर दिया है|
इस कंपनी ने अपने समर्थन में इसको अमरीकी लोगों की निजता की ज़रूरत को महत्वपूर्ण मानना बताया है| पर इससे डोनल्ड ट्रॅंप को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा और इन्होने साफ साफ कहा है की एप्पल को सरकार की बात माननी चाहिए ताकि आतंकवाद के उन्मूलन में अमरीका आगे बढ़ता जाए|
उन्होने कंपनी को आगाह करते हुए कहा है की अगर बात नहीं मानी तो वो खुद से शुरुआत करके एप्पल के समान का बॉयकॉट करेंगे|
सैन बर्नाडिनो नरसंहार में 28 वर्षीय मुस्लिम युवक सैयद रिज़वान फ़ारूक़ ने अपनी बेगम 27 वर्षीय पाकिस्तानी मूल की तशफीन मलिक के साथ मिलकर करीब 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, और इसको अमरीकी समाज में अब तक से सबसे घातक आतंकवादी हमलों में से एक करार दिया जा रहा है|
डोनल्ड ट्रॅंप ने आतंकवाद के उन्मूलन को एक मुख मुद्दा बनाया हुआ है और इसके लिए उन्होने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा पर तीखे हमले किए हैं|
भले अमरीका अपने आपको सेक्युलर देश बताता हो पर ये भी एक तथ्य है की अमरीका एक क्रिस्चियन बहुल देश है और उसके राष्ट्रपति भी बाइबल पर ही शपथ खाते हैं, इसीलिए ओबामा का मज़हब भी इस दौड़ में एक मुद्दा बन कर उभरा है|
ओबामा को कई बार परोक्ष रूप से मुसलमान होने के ताने दिए जाते हैं, हालाँकि ये भी सच है की इसका कारण ओबामा की नीतियाँ ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं जिसको डोनल्ड ट्रॅंप जैसे उम्मीदवार उनके मुसलमान होने को बताने में लगे हैं|
ये तो रही अमरीका की बात, जहाँ किसी का मज़हब, भले ही वो विश्व का सबसे ताकतवर आदमी क्यूँ ना हो, किसी और को उस पर हमले करने का लाइसेंस दे देता है, पर तब भी कोई अमरीका को असहिष्णु नहीं कहता|
ना कोई विपक्षी, ना कोई एनजीओ ऐसी बात करता है ना ही अमरीकी जनता इसको कभी बर्दाश्त करती है जबकि भारत को बदनाम कारने में कोई पीछे नहीं रहता| राई का पहाड़ बना कर देश को बदनाम करना और उसकी राजनीति पर अपनी चालें चलना आख़िर सही है क्या?
ये सवाल सभी भारतीयों से पूछे जाने चाहियें|