क्या अरनब गोस्वामी ने ग़लती कर दी?

अरनब गोस्वामी को बरखा दत्त और कई पत्रकारों अब घेर लिया है|उनको तरह तारह की बातें कही जा रही हैं तो कहीं कहीं ये साबित करने की कोशिश की जा रही है की गिसवामी ने ये सब कुछ भाजपा की चमचागिरी करने के लिए किया है| बरखा दत्त और कई पत्रकारों का नाम तो रडिया टेप्स में आ चुका है जबकि अरनब गोस्वामी का दामन पाक-साफ है| तो ये इल्ज़ाम लगाना की अरनब गोस्वामी ये सब कुछ अपने आपको भाजपा से कुछ लेने के लिए कर रहे हैं एक फ़िज़ूल का सा इल्ज़ाम है|

आप अरनब गोस्वामी को कुछ भी कह सकते हो पर उनकी कलम और पात्रकारिता को गाली नहीं दे सकते| इस मसले पर तो कम से कम बिल्कुल ही नहीं|

अरनब गोस्वामी की पत्रकारिता और उनकी अपनी सोच उनको भारत सरकार के साथ खड़ा करती है, देश की सेना के साथ खड़ा करती है, तो क्या इसका मतलब वो अब पत्रकार नहीं रहे? इस तरह की बेहूदा बात केवल वही कर सकते हैं जो गोस्वामी की लोकप्रियता से जलन खा कर बैठे हैं, वैसे भी बाकी चेनल टाइम्स नाउ के मुक़ाबले कुछ नहीं हैं|

जो आज कल के पत्रकार गोस्वामी के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं इसका उल्टा असर हो रहा है| पहले ही बरखा दत्त को ट्विटर और फेसबुक पर दुनिया भर की बातें सुनने को मिल रही हैं| बरखा का अरनब गोस्वामी के खिलाफ मोर्चा खोलना उनकी छटपटाहट दिखता है और इसमें उन्होने राजदीप सरदेसाई को भी घसीटने की कोशिश की है| मतलब एक पूरा का पूरा वर्ग जो कभी गोस्वामी के साथ एनडीटीवी के साथ काम करता था, आज वो गोस्वामी को नीचे गिरना चाहता है|

पर वो ये भूल गए की एनडीटीवी की कोई ख़ास पकड़ नहीं है और जो आजकल वो खबरों में हैं वो मात्र इसीलिए क्यूंकी कुछ लोगों को इन पत्रकारों को सोशियल मीडीया पर चिढ़ाना और भड़कना भाता है| अगर इस तरह के लोग ना होते और सोशियल मीडीया का दायरा इतना ना फैला होता तो कितने लोग थे जो इन पत्रकारों को जानते भी?

पर वो अरनब गोस्वामी को तब भी जानते और तब भी अरनब गोस्वामी की इतनी ही इज़्ज़त करते| सबसे बड़ी बात तो ये है की गोस्वामी ने जो बातें कहीं थी वो सब पाकिस्तान के विरोध में थीं और उन पत्रकारों के खिलाफ थीं जो की पाकिस्तान को ज़रूरत से ज़्यादा समर्थन दे रहे हैं| इसमें उन्होने क़िस्सी पत्रकार का नाम नहीं लिया था, तो अगर ये पाकिस्तान समर्थक पत्रकार चाहते तो चुप रह सकते थे| क्या ज़रूरत थी इनको प्रतिक्रिया देने की? प्रतिक्रिया देते ही सबको पता चल गया की गोस्वामी का इशारा था किस पर, मतलब इन तथाकथित पाकिस्तान समर्थक पत्रकारों ने खुद को ही एक्सपोज़ कर डाला और अब सारा का सारा दोष गोस्वामी के सिर मढ़ कर अपने आप के लिए सहनभूति चाहते हैं|

सबसे अजीब बात ये है की ये पाक समर्थक पत्रकार ‘बोलने की आज़ादी’ के पीछे छिप रहे हैं, पर क्या अरनब गोस्वामी को बोलने की आज़ादी अपने विचार रखने की आज़ादी नहीं मिलनी चाहिए? जब कश्मीर के दंगाइयों के लिए पत्रकारिता करने की आज़ादी चाहिए इन पत्रकारों को, तो अरनब गोस्वामी को वो सेना के साथ सुर मिलने की आज़ादी क्यूँ नहीं मिलनी चाहिए? मात्र इसीलिए क्यूंकी भारत की पत्रकारिता का अर्थ अब देश के खिलाफ कुचक्र रचने वालों को समर्थन देने तक का ही रह गया है?

सबसे ताज्जुब की बात ये है की बोलने की आज़ादी वाले  अरनब गोस्वामी के उपर ज़ाकिर नाइक के 500 करोड़ के मानहानि के दावे पर चुप होकर बैठे हैं! मतलब जो भी पत्रकार इस तरह के खिलाफ बोलेगा उसको पत्रकारों एक पूरी की पूरी जमात इसी तरह से प्रताड़ित करेगी!

अब इसमें अरनब गोस्वामी की क्या ग़लती?

अपनी राय हमें कमेंट्स और पोल में वोट करके ज़रूर बतायें|

अगर आपको समर्थन देना होगा तो क्या आप अरनब गोस्वामी को समर्थन देंगे?

View Results

Loading ... Loading ...