जनरल वी के सिंह का लेख कश्मीर के हालात पर

General VK Singh, Kashmir, Burhan Wani, Indian Army

कश्मीर की वर्तमान परिस्तिथि से आप परिचित होंगें ही। “शहीद” बुरहान वनि के लिए कुछ “बुद्धिजीवी शुभचिंतक” अविलम्ब अपना शोक व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने भारतीय सरकार एवं जम्मू कश्मीर की सरकार को कटघरे में खड़ा कर के पूर्णतयः दोषी घोषित कर दिया है। उन्होंने यहाँ तक बोल दिया कि जनता की आवाज़ को बलपूर्वक दबाया जा रहा है। सेना और पुलिस सरकारी वेतनभोगी अत्याचारी हैं जिन्हें परपीड़ा में आनंद आता है।

सीमा पार से भी जनता के विरोध को पुरज़ोर समर्थन मिल रहा है। अलगाववादी नेता निरन्तर विरोध के पक्ष में हैं।
दोस्तों, जब आतंकवादी, ईर्ष्यालु पड़ोसी, और देश में रह कर उसे ही तोड़ने वाले देशद्रोही एक सुर में राग अलापें, तो समझ लीजिए कि उनके खेमे में संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बाकी आप खुद समझदार हैं। कुछ प्रश्न के उत्तर कश्मीर के लोगों को उनसे पूछने चाहिए जो उन्हें दंगों में जाने के लिए उकसाते हैं।
गत वर्ष जब कश्मीर में बाढ़ आई थी, बुरहान वनि ने कितने कश्मीरियों को बचाया था? जिस भारतीय सेना ने डूबते हुए कश्मीर को एक नयी साँस दी थी, बुरहान वनि उसी भारतीय सेना के विरुद्ध हमलों के लिए युवाओं को उकसाता था।

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क्या ये हमारे शहीद हैं? भारतीय सेना ने उसे मार गिराया, और हमें गर्व है अपनी सेना पर। भगवान् न करे कोई आपदा कश्मीर में आये, जिनपर पत्थर बरस रहे हैं, वही संकट मोचक बन कर सबसे आगे खड़े होंगें। इस विश्वास की पुष्टि मुझसे नहीं, किसी कश्मीरी से ही कर लीजिए।
कुछ लोग कश्मीर की परिस्तिथि का ठीकरा भारत के सर फोड़ते हैं, और UN Convention का हवाला देते हुए कहते हैं कि भारत ने अभी तक कश्मीरियों से मताधिकार क्यों नहीं करवाया। आप सबको शायद यह जान कर आश्चर्य हो, भारत चाह कर भी कश्मीर को लेकर जन मत नहीं ले सकता, क्योंकि UN Convention के अनुसार जन मत के लिए पाकिस्तान द्वारा ग़ुलाम बनाए कश्मीर से अपनी सेना हटाना पहला चरण है। इस बारे में कश्मीरियों को कौन गुमराह कर रहा है, और क्यों? भारत की ओर जो क्रोध उड़ेला जा रहा है, उसे सही दिशा देना चाहिए।
दुःख है कि जहाँ कश्मीर का एक युवा civil services में सर्वोच्च स्थान से उत्तीर्ण होता है तो वहीं दूसरा युवा हाथ में पत्थर उठा लेता है। युवाओं को यह निर्णय लेना पड़ेगा कि कौन से विकल्प से वो कश्मीर को बेहतर बना सकते हैं।

कश्मीर तो हमारा ही रहेगा। 1947 से इस विचार में कोई परिवर्तन नहीं आया, और न ही आएगा। 2004 में हमारे प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत की सीमाएँ परिवर्तित नहीं होंगी, आवत जावत के लिए सुविधा अवश्य दी जा सकती है। इस तथ्य को जितनी शीघ्रतापूर्वक स्वीकार करेंगे, उतना सभी के लिए अच्छा होगा।
हमारी सहायता करिये, कि हम आपकी सहायता कर सकें। सम्पूर्ण विश्व भारत का लोहा मान रहा है, और जानता है कि भविष्य में भारत का अति विशेष स्थान है।
क्या आप इस महागाथा का भाग बनेंगें? मेरी विनती है, भीड़ से निकलिए, अपना भविष्य स्वयं निर्धारित करिये।

जनरल वी के सिंह की वॉल से साभार!