मोदी सरकार के इस मुद्दे पर हुई थी आलोचना, पर सच्चाई क्या है?

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मोदी सरकार पर कुछ लोग नाराज़ हैं क्यूंकी उनको लगा था की सरकार ने राजनीतिक दलों के काले धन पर चुप्पी साध ली है|

इस पर मोदी सरकार ने साफ बातें जनता के सामने रखी हैं, एक प्रेस नोट में मोदी सरकार ने कहा की कुछ समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट से इस तरह के गलत संकेत मिलते हैं कि पुराने करेंसी नोटों को जमा करने के परिप्रेक्ष्‍य में चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न की कोई जांच नहीं हो सकती।

मोदी सरकार ने प्रेस नोट में कहा हैं की:

ऐसा लगता है कि इस तरह के निष्‍कर्ष इस तथ्‍य की वजह से निकाले गए हैं कि राजनीतिक दलों की आय को खंड-13ए के तहत आयकर से छूट प्राप्‍त है।

इस परिप्रेक्ष्‍य में निम्‍नलिखित स्‍पष्‍टीकरणों को ध्‍यान में रखे जाने की जरूत है –

1. आयकर से छूट कुछ खास शर्तों के तहत केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों को दी जाती है। जिनका जिक्र खंड-13ए में है। इसमें बहीखातों का रख-रखाव तथा अन्‍य दस्‍तावेज शामिल हैं, जिससे निर्धारण अधिकारी उनकी आय को घटाने में समर्थ हो सकें।

2. 20,000 रुपये से अधिक के प्रत्‍येक स्‍वैच्छिक योगदान के संबंध में राजनीतिक दल को ऐसा योगदान देने वाले व्‍यक्ति के नाम एवं पते समेत ऐसे योगदानों के रिकॉर्ड का रख-रखाव करना होगा।

3. ऐसे प्रत्‍येक राजनीतिक दल के खातों का एक चार्टर्ड एकाउंटेंड द्वारा लेखा परीक्षण किया जाएगा।

4. राजनीतिक दल को एक अनुशंसित समय सीमा के भीतर ऐसे प्राप्‍त अनुदानों के बारे में चुनाव आयोग को एक रिपोर्ट प्रस्‍तुत करनी होगी।

आयकर अधिनियम में राजनीतिक दलों के खातों की जांच करने के लिए पर्याप्‍त प्रावधान हैं तथा ऐसे राजनीतिक दल रिटर्न भरने समेत आयकर के अन्‍य प्रावधानों के भी विषय हैं।

मतलब मोदी सरकार ने साफ तौर पर अख़बारों में आई इस तरह की खबरों का खंडन और स्पष्टीकरण दे दिया है|

पर क्या आप मोदी सरकार के स्पष्टीकरण से संतुष्ट हैं?