अफ़ग़ानिस्तान के नवनिर्माण के लिये दुनिया भर से पैसा बटोरने में लगी अफ़ग़ान सरकार यह मानने को तैयार नहीं होती कि अफ़ग़ानिस्तान के एक बड़े हिस्से पर एक तरह से तालिबान की हुकूमत चलती है।
न सिर्फ़ यह कि अफ़ग़ानिस्तान के कई सूबों में तालिबान की हुकूमत चलती है, बल्कि वहाँ के बाशिन्दे भी उनसे ख़ुश हैं।
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने जब इस ईद पर तालिबान के साथ एकतरफ़ा युद्धबंदी की घोषणा की थी, उस वक़्त उनके ज़ेहन में यह बात नहीं रही होगी कि आज के तालिबान 17 साल पहले के तालिबान जैसे नहीं हैं।
आज के तालिबान मज़हबी अक़ीदे के मामले में भले ही पहले के तालिबान जैसे ही हैं, लेकिन युद्धनीति के मामले में ये पहले के तालिबान से कहीं बेहतर हैं।
आज के तालिबान पहले के उन तालिबान जैसे नहीं हैं, जो बुर्क़ा पहने किसी औरत को सिर्फ़ इसलिये सोटी से पीटना शुरू कर देते थे कि उसके साथ कोई महरम (परिवार का मर्द सदस्य) नहीं है।
आज के तालिबान स्कूलों को गिराने में नहीं लगे हुये, बल्कि स्कूलों को चलने दे रहे हैं। इतना ज़रूर है कि वे यह देखते हैं कि विद्यार्थियों को पढ़ाया क्या जा रहा है।
जैसे ही अफ़ग़ान राष्ट्रपति ने ईद के त्यौहार पर तालिबान से एक-तरफ़ा सात दिन की युद्धबंदी की घोषणा की, तालिबान ने हेरात सूबे में एक हमले में 17 अफ़ग़ान फ़ौजियों को मार दिया। अगले दिन तालिबान ने कुंदुज़ सूबे में हमला करके 19 पुलिस वालों को मार दिया। इसके कुछ घण्टे बाद ही तालिबान ने ईद के त्योहार पर सरकार से तीन दिन की युद्धबंदी का ऐलान कर दिया।
एक सरकारी फ़ौजी के साथ एक तालिबान लड़ाका
अफ़ग़ानिस्तान सरकार और अफ़ग़ान तालिबान के दरमियान युद्धबंदी के दौरान ही अमेरिका ने एक ड्रोन हमले में पाकिस्तानी तालिबान के नेता मौलाना फ़ज़्लुल्लाह उर्फ़ मुल्ला रेडियो को अफ़ग़ानिस्तान की सीमा के अन्दर उस वक़्त मार डाला, जब वह इफ़्तार पार्टी कर रहा था। अमेरिका ने उस पर 50 लाख डॉलर का इनाम घोषित किया हुआ था।
अपनी तरफ़ से युद्धबंदी का ऐलान करते ही अफ़ग़ान तालिबान लड़ाके सरकारी कन्ट्रोल वाले इलाक़ों के शहरों और सूबाई राजधानियों में हथियारों समेत घूमने लगे। चाहे मीडिया ने यह दावा किया है कि तालिबान लड़ाके बिना हथियारों के थे, पर तस्वीरें कुछ और सच्चाई बयान कर रही हैं।
जलालाबाद शहर में एक मोटरबाइक पर तालिबान लड़ाके
युद्धबंदी का मतलब था कि अब अफ़ग़ान सरकारी फ़ौजें और तालिबान आपस में दुश्मन नहीं रहे थे। शहरों में सरकारी फ़ौजियों से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते तालिबान जगह-जगह दिखने लगे।
आम लोग तो सब जगह ही भोले होते हैं। कभी वे सरकार द्वारा मूर्ख बना दिये जाते हैं और कभी विद्रोहियों या ऑपोज़िशन द्वारा। अफ़ग़ानिस्तान में भी फ़ौजियों को तालिबान से गले मिलते देख आम लोगों को लगने लगा कि अब मुल्क में अमन होने ही वाला है।
एक सरकारी फ़ौजी से गले मिलता तालिबान लड़ाका
सरकारी फ़ौजियों, पुलिस वालों, और आम लोगों के गले मिलकर सेल्फ़ी लेते तालिबान लड़ाकों को रिझाने के लिये सरकार ने युद्धबंदी को दस दिन के लिये और बढ़ा दिया।
तालिबान की तीन दिन की युद्धबंदी के दूसरे दिन सरकारी सैनिक, पुलिस वाले, तालिबान, और आम लोग जब ईद की खुशियां मना रहे थे, तभी इस्लामिक स्टेट ग्रुप ने हमला करके कम-से-कम 25 लोगों को मार दिया। मरने वालों में अफ़ग़ान फ़ौजी, तालिबान, और आम लोग शामिल थे।
इस्लामिक स्टेट के इस हमले ने आम अफ़ग़ान लोगों की हमदर्दी तालिबान से और बढ़ा दी।
अब सरकार ने युद्धबंदी ख़त्म कर दी है। सरकार की तालिबान से दुबारा जंग शुरू हो चुकी है। अफ़ग़ानिस्तान में युद्धबंदी का भारत समेत कई देशों ने स्वागत किया था। भारत सरकार ने तो ख़ुद भी जम्मू कश्मीर राज्य में रमज़ान के पूरे महीने के लिये युद्धबंदी घोषित की थी।
लेकिन यह हक़ीक़त है कि अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के दरमियान हुई जंगबन्दी का फ़ायदा तालिबान को ही हुआ है। उन्होंने सरकार के कब्ज़े वाले इलाक़ों में जाकर सर्वे करने के मौके को गंवाया नहीं। उन्होंने आम लोगों के दिलों में अपने लिये जगह बनाने की कोशिश की। वे कई अफ़ग़ान सरकारी फ़ौजियों के नज़दीक होने में भी कामयाब हुये।
देखना यह होगा कि लम्बे वक़्त के लिये इस जंगबन्दी के नतीजे क्या निकलते हैं।