तमिल नाडू : क्या मंदिर और ईश्वर पर किसी एक वर्ग का ही अधिकार होता है? क्या दलित समाज इक्कीस्वी सदी में भी अपने ईश्वर के सान्निध्य से वंचित रहेगा?
ये सवाल तब मान में उठते हैं जब newsx.com ने ये खबर बताई की मंदिर में प्रवेश ना मिलने से आहत दलित समुदाय अब इस्लाम अपनाने की राह देख रहा हाई| ये हो सकता है की वो इस्लाम ना अपनाए और मात्र हिंदू समाज का ध्यान अपने साथ होते हुए अन्याय की तरफ ही आकर्षित करना चाहे| पर फिर भी इस 250 दलित परिवारों को धर्म परिवर्तन का रुख़ करना ही क्यूँ पड़ा वेदारन्यम और करूर गाँव में?
कमाल की बात ये है की हिंदू धर्म के नाम पर वोट बटोरने वाले क्यूँ इन सब मुद्दों पर देर से जागते हैं? क्या उनको नहीं लगता की दलित समाज को भी हिंदू समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का समय आ गया है?
ये वही हिंदू धर्म के ठेकेदार हैं जो सिर्फ़ ज़ुबानी खंजर चलते हैं पर भाजपा संसद तरुण विजय जैसे यहाँ पर विरले ही हैं|
जो अपनी जान हथेली पर रखकर भी समाज में समरसता के प्रयासों को जारी रखते हैं| नरेंद्र मोदी और भी कई नेता जो की तथाकथित उच्च जातियों से नहीं हैं, उनको जब ये देश सर माथे पर बैठा सकता है तो इसका मतलाब ये है की बदलाव चालू तो है पर इसमें और तेज़ी लानी होगी|
इस्लाम अपनाने की बात पर कट्टरपंथी तमिल नाडू तव्हीद जमात इन हिंदू दलितों के पास पहुँच गया है पर हिंदू संगठन यहाँ पर अभी भी नदारद हैं|
दलित समाज का हाल आज कल कुछ ऐसा हो गया है की उनको अपनी बात उपर तक पहुँचने के लिए धर्म परिवर्तन का सहारा लेना ही पड़ता है, तभी हिंदू संगठन जागते हैं| इसीलिए सबसे पहले हिंदू संगठनों को समरसता का प्रयास करना होगा|
सबसे अजीब बात यहाँ ये है की जिस मंदिर में दलित समुदाय को जाने से रोका जा रहा है, महाशक्ति अम्मान मंदिर में, वो माता का मंदिर है जिसको इन्ही दलित समुदाय के लोगों ने अपनी ही जेब के पैसों से खड़ा किया था!
क्या माता शक्ति के दरबार में भी बेटे बेटियों में भेदभाव होगा अब?
जहाँ हिंदू समाज बाकी समाजों के हितों के लिए तुरंत उठ खड़ा होता है, अब उसे चाहिए की वो कुछ ऐसा ही अपने खुद के लोगों के लिए भी करे|