भारतीय सेना भारत का मान है और स्वाभिमान है| देश के बहादुर बेटे बेटियाँ भारतीय सेना का हिस्सा बनते हैं| पर गर्व तब और हो जाता है जब एक जनरल सामने से आकर खुद एक भारतीय सेना के वीर की गाथा बताता है| तो पढ़िए भारतीय सेना के जाँबाज़ सिपाही की कहानी:
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जहाँ पडोसी मुल्क जा कर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे थे, वहीं सामने वाला एक नापाक़ साजिश को अंजाम दे रहा था। लोग अक्सर कहते हैं कि पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बनाने चाहिए। ऐसा नहीं कि हम शान्ति नहीं चाहते। मगर अच्छे होते हैं वो बुरे लोग, जो अच्छा होने का दिखावा नहीं करते।
सर्दियों में Line of Control (LOC ) से भारत और पाकिस्तान की सेनाएँ अत्यंत विषम परिस्तिथियों के कारण पीछे हट जाती हैं, और सर्दियों के उपरान्त पुनः अपनी पुर्वोचित स्थान पर आ जाती हैं। 1998 की सर्दियों में भारतीय सेना के हटने के बाद पाकिस्तानी सेना और उसके सहयोगी आतंकी भारतीय सीमाओं के अंदर की पर्वत चोटियों पर जा बैठे। उन ऊँचाईयों पर बैठने से दुश्मन को एक अजेय सुविधा प्राप्त हो गयी थी। नीचे से ऊपर आक्रांताओं पर हमला करती भारतीय सेना आसानी से दुश्मन के निशाने पर आ गयी थी। सेना जिन ऊँचाइयाँ की रक्षा करती थी, वही ऊँचाइयाँ उनका काल बन रहीं थीं।
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव भारतीय सेना के 18 Grenadiers का हिस्सा थे। ‘घातक’ कमाण्डो पलटन के सदस्य ग्रेनेडियर यादव को Tiger Hill के अत्यधिक महत्वपूर्ण तीन दुश्मन बंकरों पर कब्ज़ा करने का दायित्व सौंपा गया। सामने के हमले विफल हो रहे थे। योजना यह थी कि 18000 फ़ीट की ऊँचाई वाले Tiger Hill पर उस तरफ से चढ़ाई करनी होगी जो इतनी दुर्गम हो कि दुश्मन उस तरफ से भारतीय सैनिकों के आने की कल्पना भी न कर पाए। अगर चढ़ते हुए दुश्मन की नज़र पड़ी, तो निश्चित मृत्यु। अगर दुश्मन नहीं भाँप पाया तो 100 फ़ीट से ज़्यादा की खड़ी चढ़ाई चढ़ने की थकान की उपेक्षा कर के गोला बारूद से लैस प्रशिक्षित आतंकियों से भरे उन बंकरों पर हमला करना था जो दूसरी तरफ से आगे बढ़ने वाले भारतीय सैनिकों को बिना कठिनाई के मार गिरा रहे थे।
क्या आपके मुँह से “असंभव” निकल गया? यह शब्द भारतीय सैनिकों के कान खड़े कर देता है। ऐसे शब्द उनके अहम् को चुनौती देते हैं।
ग्रेनेडियर यादव ने स्वेच्छा से आगे बढ़ कर उत्तरदायित्व संभाला जिसमे उन्हें सबसे पहले पहाड़ पर चढ़ कर अपने पीछे आती टुकड़ी के लिए रस्सियों का क्रम स्थापित करना था। 3 जुलाई 1999 की अँधेरी रात में मिशन आरम्भ हुआ। कुशलता से चढ़ते हुए कमाण्डो टुकड़ी गंतव्य के निकट पहुँची ही थी कि दुश्मन ने मशीनगन, RPG, और ग्रेनेड से भीषण हमला बोल दिया जिसमे भारतीय टुकड़ी के अधिकाँश सदस्य मारे गए या तितर बितर हो गए, और स्वयं यादव को तीन गोलियाँ लगीं। मैं चाहूँगा की कमज़ोर दिल वाले इसके आगे न पढ़ें।
इस हमले से ग्रेनेडियर यादव पर यह असर हुआ कि वह एक घायल शेर की तरह पहाड़ी पर टूट पड़े। यादव ने तीन गोलियाँ लगने के बावजूद खड़ी चढ़ाई के अंतिम 60 फ़ीट अकल्पनीय गति से पार की। ऊपर पहुँचने के बाद दुश्मन की भारी गोलाबारी ने उनका स्वागत किया। अपनी दिशा में आती गोलियों को अनदेखा कर के दुश्मन के पहले बंकर की तरफ यादव ने धावा बोल दिया। निश्चित मृत्यु को छकाते हुए बंकर में ग्रेनेड फेंक कर यादव ने आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया। अपने पीछे आती भारतीय टुकड़ी पर हमला करते दूसरे बंकर की तरफ ध्यान केन्द्रित किया। जान की परवाह न करते हुए उसी बंकर में छलांग लगा दी जहाँ मशीनगन को 4 सदस्यों का आतंकीदल चला रहा था। ग्रेनेडियर यादव ने अकेले उन सबको मौत के घाट उतार दिया। ग्रेनेडियर यादव की साथी टुकड़ी तब तक उनके पास पहुँची तो उसने पाया कि यादव का एक हाथ टूट चुका था और करीब 15 गोलियाँ लग चुकी थीं। ग्रेनेडियर यादव ने साथियों को तीसरे बंकर पर हमला करने के लिए ललकारा और अपनी बेल्ट से अपना टूटा हाथ बाँध कर साथियों के साथ अंतिम बंकर पर धावा बोल कर विजय प्राप्त की।
विषम परिस्तिथियों में अदम्य साहस, जुझारूपन और दृढ़ संकल्प के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया।
समस्या बस यह थी कि ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव इस अविश्वसनीय युद्ध में जीवित बच गए थे और उन्हें अपने मरणोपरांत पुरस्कार का समाचार हस्पताल के बिस्तर पर ठीक होते हुए मिला।
विजय दिवस पर ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव जैसे महावीरों को मेरा सलाम जिन्होंने कारगिल युद्ध में भारत की विजय सुनिश्चित की|
ये पूरा का पूरा लेख जनरल वी.के. सिंह ने अपने फ़ेसबुक वॉल पर लिखा था और इसको वैसा ही यहाँ प्रस्तुत किया गया है| भारतीय सेना के वीर को नमन!