1947 के कत्लेआम का दर्द और हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी की गाथा!

New Delhi, Books, Gandhism, Mahatma Gandhi, India, Hindus, Hinduism, Pragati Maidan, World Book Fair 2020

ब्लॉगर अमृत पाल सिंह ‘अमृत’ ने हाल ही में एक हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी  का उल्लेख किया जिसके बारे में ज़्यादा लोग जानते नहीं हैं| उन्होने अपने लेख में हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी  के वजूद पर रोशनी डाली| ये पोस्ट उनकी फेसबुक वॉल से ली गयी है और इसमें कोई छेड़ छाड़ नहीं की गयी है:

कुछ भाइयों को यह समझने में दिक्कत होती है कि 1947 के वक़्त के भारत की राजनीतिक विचारधाराओं में मैं किसे समर्थन देता हूँ या मेरी राजनीतिक सोच की जड़ कहाँ है।

इण्डियन नेशनल काँग्रेस उस वक़्त भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी। कांग्रेस के संघर्ष की मैं अक्सर हिमायत करता हूँ, ऐसा मेरी वीडिओज़ से साफ़ हो जाता है। लेकिन गान्धी जी पर मेरे कुछ कमैंट्स कुछ भाइयों को कंफ्यूज़ कर देते हैं।

मुस्लिम लीग की विचारधारा का मैं प्रत्यक्ष ही विरोध करता हूँ। जिन्नाह साहिब का विरोध करने की एक ही वजह यह है कि उन्होंने पाकिस्तान का समर्थन किया और पाकिस्तान बनाने की मूवमेंट का चेहरा बन गये। हालाँकि मैं यह भी समझता हूँ कि जिन्नाह न भी होते, पाकिस्तान तब भी बन जाता। पाकिस्तान बनाने वाली असली ताक़त तो उस वक़्त की ब्रिटिश हुकूमत ही थी। जिन्नाह साहिब का तो बस इस्तेमाल किया गया था। इस पर विस्तार से मैं आगे आने वाली अपनी वीडिओज़ में विचार करूँगा।

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा भी किसी वक़्त एक राजनीतिक शक्ति थी। उनसे निश्चित रूप से मेरी हमदर्दी है। 1946 के चुनाव में उनको बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। जो सीटें पहले उनके पास थीं, वे भी काँग्रेस को चली गयीं। हिन्दू महासभा का सिन्ध के हिन्दुओं में अच्छा प्रभाव था। हिन्दू महासभा कभी सिन्ध की सूबाई सरकार का भी हिस्सा रही थी। सिन्ध पाकिस्तान के हिस्से में आया।

पाकिस्तान से आये हमारे रिफ्यूजी लोगों की रिफ्यूजी कैम्पों में हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं ने सेवा की। उसको याद रखा जाना चाहिये।

अकाली दल पंजाब के सिखों की राजनीतिक पार्टी थी, जिसको कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर काँग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त रहा। अँग्रेज़ी हुकूमत के दौरान अकालियों और कांग्रेसियों ने इकट्ठे भी अंग्रेज़ों से मार खाई। एक ही व्यक्ति एक ही समय अकाली दल का भी मेम्बर हो सकता था और काँग्रेस का भी। जब अकालियों ने पाकिस्तान बनाए जाने की स्थिति में पंजाब के बटवारे की माँग की, तो काँग्रेस ने उसकी ज़ोरदार हिमायत की।

हालात के चलते मेरे पिता जी अकाली नेता मास्टर तारा सिंघ के सम्पर्क में आये और लगभग दो साल जेल में रहे। उस वक़्त के अकाली दल के प्रति मेरी हमदर्दी को इस तथ्य से समझा जा सकता है।

हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी , गाँधी,Hindu Muslim Unity, Nobel Prize, Mahatma Gandhi, India, Pakistan, Pakistani Hindus, Indian Muslims, Jinnah
हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी हिंदू और सिख समाज की एक आवाज़ थी| पर अब उसको कोई जानता ही नहीं! क्या इतिहास हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी के नेताओं के साथ न्याय कर पाएगा?

दिसम्बर 1946 और जनवरी 1947 में हज़ारा के हिन्दू-सिख क़त्लेआम को जिस तरह से छुपाने की कोशिशें की गईं थीं, उससे मेरे बुज़ुर्गों को बहुत बुरा लगा। आज मैं यह महसूस करता हूँ कि उस वक़्त काँग्रेस पार्टी और अकाली दल की सियासी मजबूरियाँ थीं उस क़त्लेआम पर बात न करना।

चलो, सियासी मजबूरियाँ थीं। इसलिये इस मुद्दे पर चुप रह जाता हूँ। पर जो सैंकड़ों हिन्दू-सिख हज़ारा के इलाके में मारे गये, उनकी बात कहीं भी न होने से दिल दुखता तो है। हज़ारा से निकलकर जो हिन्दू, सिख भारत में आये, वे यहाँ आकर भी काँग्रेस या अकाली दल को ही वोट देते रहे। मजबूरियाँ ही रही होंगी। कोई और ऑप्शन भी तो नहीं था।

महात्मा गाँधी हत्या: 1948 में बम्बई स्टेट में क़त्ल कर दिये गये ब्राह्मणों का ज़िक्र मैं कैसे छोड़ दूँ?

मेरे ख़ानदान का सम्बन्ध नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स (सूबा सरहद) से था। वहाँ ख़ुदाई ख़िदमतगारों का काँग्रेस पार्टी से तालमेल था। उन्हीं की सरकार थी। जब आख़री वक़्त आया, तो काँग्रेस पार्टी भारत की हुकूमत संभाल कर बैठ गयी और ख़ुदाई ख़िदमतगारों को उनको हाल पर छोड़ दिया गया। गान्धी जी ने उनको सलाह दी कि रेफरेंडम का बहिष्कार कर दो। उन्होंने रेफरेंडम का बहिष्कार कर दिया। नतीजा आपको पता ही है। रेफरेंडम पाकिस्तान के हक़ में हुआ। फिर जो कुछ नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स के हिन्दुओं, सिखों के साथ हुआ, वह उस इतिहास में है, जो न भारत में पढ़ाया जाता है, न पाकिस्तान में।

मेरी राजनीतिक सोच की जड़ को समझने में बहुत लोगों को दिक्कत इसलिये होती है, क्योंकि उन्हें यह पता ही नहीं कि इण्डियन नेशनल काँग्रेस, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, अकाली दल आदि राजनीतिक पार्टियों के इलावा एक और राजनीतिक पार्टी थी, जिसका वजूद नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स में था। उसका नाम था: हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी। इस पार्टी के सूबाई असेम्बली में भी मेम्बरज़ थे और यह पार्टी सूबा सरकार में भी शामिल रही।

हिन्दुओं की पार्टी थी हिन्दू महासभा और सिखों की पार्टी थी अकाली दल। पर कभी नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स के नेशनलिस्ट हिन्दुओं, सिखों की अपनी एक अलग सांझा राजनीतिक पार्टी हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी भी हुआ करती थी। इनका न तो मुसलमानों से कोई विरोध था, न पश्तून नेशनलिज़्म से।

1947 के बाद हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी का कोई वजूद न रहा। ‘सेक्युलर पार्टी’, ‘हिन्दू पार्टी’, और ‘सिख पार्टी’ के दौर में ‘हिन्दू-सिख नेशनलिज़्म’ हम पीछे कहीं नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स में ही छोड़ आये हैं।

मलेशिया के उत्पीड़ित हिंदू समुदाय की आपबीती कौन सुनेगा?

अब आप लोग पूरी ईमानदारी से नीचे कमैंट्स में बताईये कि इस पोस्ट को पढ़ने से पहले क्या आपको पता था कि कोई हिन्दू सिख नेशनलिस्ट पार्टी भी हुआ करती थी? मैं बस यह सर्वे करना चाहता हूँ।