पश्तून लॉन्ग मार्च

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पाकिस्तान में पश्तून फिर से जद्दोजहद में जुट गये दिख रहे हैं।

12 जनवरी, 2018 को कराची में एक बेगुनाह पश्तून नक़ीबुल्लाह महसूद को दहशतगर्द कहकर एक झूठे पुलिस मुक़ाबले में मार दिया गया। सबसे पहले तो पश्तून एक्टिविस्टों ने सोशल मीडिया पर आवाज़ उठाई। मैंने भी इस पर एक पोस्ट अपने फेसबुक पेज पर लिखी थी।

उसके बाद ख़्यबेर पख़्तूनख़्वा और क़बायली इलाक़ों में पश्तून लामबन्द होना शुरू हुये, जिसके नतीजे में पश्तून लॉन्ग मार्च का आयोजन हुआ। यह पश्तून लॉन्ग मार्च पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में पहुँच कर एक धरने के रूप में बदल गया, जो अभी भी चल रहा है।

जब पाकिस्तानी फ़ौज ने ज़र्ब-ए-अज़ब के नाम से क़बायली इलाक़ों में फ़ौजी कारवाई शुरू की, तभी से मैं उस इलाके के हालात पर नज़र रख रहा था। दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ फ़ौजी कारवाई होना तो ज़रूरी था, पर इसके लिये लाखों कबाइलियों को उनके इलाक़ों से निकाल कर ख़्यबेर पख़्तूनख़्वा के दूसरे हिस्सों में भेजा गया। इनको ‘इन्टर्नली डिस्प्लेसड पर्सन्स’ का दर्जा देकर माली इमदाद भी की गई। इनमें कुछ हिन्दू और सिख परिवार भी शामिल थे।

लेकिन फ़ौजी करवाई के चलते कबाइलियों के गाँवों के गाँव उजड़ गये। उनके घर मलबे के ढेर बन गये। जब इन लोगों को वापस घरों को भेजा गया, तो उनको बहुत ही बुरे हालात का सामना करना पड़ा।

दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ अपनी जंग के चलते पाकिस्तान की फ़ौज ने क़बायली इलाक़ों, ख़ास करके वज़ीरिस्तान में बारूदी सुरंगें भी बिछाई थीं। कई बेगुनाह क़बायली उन बारूदी सुरंगों की वजह से मारे गये।

अभी तक भी उन बारूदी सुरंगो की वजह से लोगों के मरने की ख़बरें आती रहती हैं।

एक तरफ़ पश्तून पाकिस्तान के तालिबान के ज़ुल्मों का शिकार हो रहे हैं, दूसरी तरफ़ तालिबान के ख़िलाफ़ जंग का दावा करने वाली पाकिस्तान की फ़ौज से भी आम पश्तूनों को कष्ट सहने पड़ रहे हैं। यही नहीं, तालिबान को मारने निकले अमेरिकन ड्रोन भी बेगुनाह लोगों को मारने में पीछे नहीं हैं।
जब यह कहा गया कि नक़ीबुल्लाह महसूद को पुलिस ने मुक़ाबले में मारा है, तो किसी ने उस पर यक़ीन नहीं किया। नक़ीबुल्लाह मॉडल बनना चाहता था। उसे बनने-सँवरने का बहुत शौक़ था। फ़ेसबुक पर वह बहुत पॉपुलर था। इस बात पर यक़ीन करना बहुत मुश्किल था कि ऐसा व्यक्ति दहशतगर्द हो सकता है।

पश्तूनों और दूसरे एक्टिविस्टों ने जब नक़ीबुल्लाह के मामले में ज़ोरदार आवाज़ उठाई, तो पुलिस के बड़े अफ़सरों की एक जाँच कमेटी बिठाई गयी। इस जाँच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह साफ़ कर दिया कि न तो नक़ीबुल्लाह कोई दहशतगर्द था और न ही उसने पुलिस से कोई मुक़ाबला किया था। उसका गुनाह बस यह ही था कि वह क़बायली इलाके से ताल्लुक़ रखने वाला एक पश्तून था।

ऐसा नहीं है कि नक़ीबुल्लाह का मामला किसी पश्तून को झूठे पुलिस मुक़ाबले में मारने का कोई एक ही मामला हो। ऐसा इल्ज़ाम है कि दहशतगर्दी के नाम पर कितने ही पश्तूनों को झूठे मुक़ाबलों में मार डाला गया है।

अंग्रेज़ सरकार ने पश्तूनों के ख़िलाफ़ 1901 में जिस ‘फ्रंटियर क्राइम्स रेगुलेशन’ क़ानून को बनाया था, उसका दुरुपयोग पाकिस्तान बनने के बाद अब तक हो रहा है। यह क़ानून अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित किये गये इन्सानी हक़ों के बिल्कुल ही ख़िलाफ़ है।

पूरे पाकिस्तान में पश्तूनों, ख़ासकर क़बायली इलाक़ों के पश्तूनों के साथ बुरा बर्ताव किये जाने की ख़बरें आना एक आम बात है।
पुलिस द्वारा दहशतगर्द कह कर बेगुनाह नक़ीबुल्लाह महसूद को क़त्ल किये जाने से पश्तूनों को फिर से अपनी बेचारगी का अहसास हो रहा है। पश्तून लॉन्ग मार्च से उन्होंने यह इशारा दे दिया है कि वे अब अपने ऊपर हो रहे ज़ुल्मों से तंग आ चुके हैं।

उनकी मुख्य मांगे इस प्रकार हैं:-
1. पश्तून जेनोसाइड बन्द हो। दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ जंग के नाम पर क़बायली इलाक़ों में आम लोगों के क़त्ल बन्द हों।
2. नक़ीबुल्लाह के क़त्ल के लिये ज़िम्मेदार राओ अनवर समेत बाक़ी पुलिस अफ़सरों को ग्रिफ्तार किया जाये।
3. कराची में हुये सभी पुलिस मुक़ाबलों की जाँच के लिये एक ज्यूडिशियल कमिश्मन बनाया जाये।
4. ख़्यबेर पख़्तूनख़्वा और कराची में सरकारी एजेंसियों और पुलिस द्वारा गायब किये गये लोगों को या तो रिहा किया जाये या उन्हें अदालत में पेश किया जाये।
5. क़बायली इलाक़ों, ख़ास करके वज़ीरिस्तान में फ़ौज द्वारा बिछाई गई बारूदी सुरंगों को हटाया जाये।
पश्तून लॉन्ग मार्च की ये सभी माँगे बिल्कुल जायज़ हैं। मैं इन सभी माँगों का समर्थन करता हूँ। पाकिस्तान सरकार को चाहिये कि इन मांगों को तुरन्त मान ले।

पश्तून भाइयों से भी मेरी अपील है कि वे अपने हक़ों के लिये अपने जायज़ संघर्ष को पुर-अमन तऱीके से ही चलायें। मेरी नेक ख़्वाहिशें और दुआएं उनके साथ हैं।

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

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