ग़रीब बच्चों को खाना खिलाने गयी महिला को क्यूँ बैठना पड़ा धरने पर?

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नई दिल्ली, जून 13, 2016: दिल्ली के पॉश कनाट प्लेस में एक महिला ने अपने पति जन्मदिन पर ग़रीब बच्चों को खाना खिलाने का सोचा| वो उनको लेकर एक बड़े रेस्टोरेंट में गयी और खाना का आर्डर दे दिया, पर खाने की बजाय उनको जाने के लिए कह दिया गया|

महिला सोनाली शेट्टी वहाँ से चली गयीं और दूसरे रेस्टोरेंट में ग़रीब बच्चों को खाना खिलाया और वापस आकर उसी रेस्टोरेंट के बाहर धरना दिया जिन्होने ग़रीब बच्चों को निकाल दिया था|
सोनाली शेट्टी देहरादून की हैं और वो इस बात से दुखी हैं की बच्चों को सिर्फ़ इसीलिए निकाला गया क्यूंकी वो ग़रीब हैं|

रेस्टोरेंट ने राइट टू रिजर्वेशन का हवाला देकर उन सबको जाने के लिए कहा था पर अब वो ये कह रहा है की बच्चे शोर मचा रहे थे इसीलिए उनको जाने के लिए बोला गया था| पर अगर देखा जाए तो ये एक आम किस्सा है, ग़रीब बच्चों को उनके कपड़ों के कारण आसानी से पहचान लिया जाता हा और बाकी लोग उनकी हालत देखकर अपना मज़ा ना खराब करें, इसीलिए रेस्टोरेंट ऐसा करते हैं|

याद है पुणे के मैक डॉनल्ड का किस्सा भी कुछ इसी तरह का था, जिसमें ग़रीब बच्चे को ऐसे ही बाहर कर दिया गया था|

उसके बाद शिवसेना ने मैक डॉनल्ड में ही ग़रीब बच्चों को ले जाकर खाना खिलाया था| पर लगता है ग़रीब बच्चों के प्रति अभी भी रेस्टोरेंट्स का बर्ताव वैसा का वैसा ही है|

सवाल ये है, की ये सभी जगहें कोई मुफ़्त में तो सामान देती नहीं हैं, और जब कोई और पैसा देकर कुछ खरीदना चाहता है तो क्या अधिकार है इन जगहों को की ये किसी को भी खाना देने से माना करें?

अब खाने पर भी क्या किसी के सामर्थ्य की मुहर लगवानी पड़ेगी? और क्या ग़रीब बच्चों को किसी अच्छी जगह पर जाने का अधिकार नहीं है, चाहे उनके साथ एक समर्थयवान इंसान भी हो जो पैसा देकर ही खाना खरीदना चाहता है? ये सवाल समाज  के लिए पूछना बेहद महत्वपूर्ण हैं|

Pic credit: ANI