भारतीय स्वतंत्रता सेनानी शहीद उधम सिंह का आज जन्मदिन है| आज जनरल वी के सिंह बता रहे हैं की क्यूँ शहीद उधम सिंह इतने महत्वपूर्ण हैं| पढ़िए उनकी फ़ेसबुक वॉल से:
अंग्रेजों के अधीन भारत में हिंदुस्तानियों के जीवन का कोई मूल्य नहीं था। किसी भी विदेशी शासक की प्रकार अंग्रेजों का भी एकमात्र ध्येय था – भारत के द्रव्य और संसाधनों का शोषण। निरंतर शोषण के लिए अपने शासन को शाश्वत बनाने के लिए कोई भी अत्याचार, कोई भी क्रूरता, आवश्यकता से अधिक प्रतीत नहीं होती थी।
ऐसा ही एक काला कुकृत्य था जालियांवाला नरसंहार। बैसाखी के शुभ अवसर पर शांतिपूर्वक प्रकार से एकत्रित हुए एक जनसमूह पर डायर ने गोलियाँ बरसाई। 1500 के करीब लोग निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिए गए जिसमे बच्चे, औरतें, और बुज़ुर्ग शामिल थे। अमानवता की एक नयी सीमा देखी गयी थी।
अचरज की बात यह थी कि कई लोगों ने डायर को किसी भी अपराध में दोषी नहीं माना। यह कहा गया कि वह सिर्फ अपनी “ड्यूटी” कर रहे थे। माइकल ओ’ ड्वायर उस समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर था। उसने डायर के अमानवीय कृत्य को सही ठहराया। अंग्रेजी शासन से न्याय की अपेक्षा भारतीयों के विश्वास का उपहास था। ड्वायर का डायर के बचाव में कूदना इस तथ्य का प्रतीक था कि भारतीय अपने ही देश में कीड़े जैसे जीने और कीड़े जैसे मरने के लिए विवश हैं। इसके लिए किसी की कोई जवाबदेही नहीं है।
उधम सिंह ने जालियांवाला नरसंहार में मरे भारतीयों का प्रतिशोध लेने का संकल्प लिया।
13 मार्च, 1940 को उधम सिंह ने ड्वायर की भरी सभा में हत्या कर दी। इसके लिए उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
कई लोगों ने शहीद उधम सिंह की आलोचना भी की। उनकी समझ में यह एक हत्या मात्र थी। वे यह नहीं समझ पाए कि यह मात्र एक हिंसक काण्ड नहीं था। एक जीवन हरने से जालियांवाला नरसंहार की क्षतिपूर्ति संभव नहीं। परन्तु विश्व के सामने उस मनोवृति पर अवश्य आघात हुआ था कि भारतीय मानवीय बर्ताव के अधिकारी नहीं हैं। शहीद उधम सिंह ने एक वैचारिक विजय भारतीयों की खाली झोली में डाल दी थी। हमारे सम्मान, गरिमा और मूल्यों को शहीद उधम सिंह ने अपने रक्त से सींचा। इसके लिए हम सदा उनके आभारी रहेंगे।
उनके जन्मदिवस पर एक कृतज्ञ राष्ट्र का उन्हें शत शत नमन।
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